हर इंसान
एक समान
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Badshah aur Darbari |
बल्ख के बादशाह हजरत इब्राहिम अपनी उदारता के लिए जाने जाते थे| वे एक
आम इंसान की तरह बेहद सादगी भरा जीवन जीते थे और अपने सहयोगियों को भी वैसा ही जीवन
जीने के लिए प्रेरित करते थे| उनमे जरा भी अहंकार नहीं था| हर समय जन कल्याण के
कार्यो में लगे रहते| जब भी फुरसत मिलती, इबादत करते या विद्वानों के साथ विभिन्न
विषयों पर विचार-विमर्श करते|
वे हर समय हर किसी से कुछ नया सीखने के लिए तैयार
रहते थे| उस समय गुलामी प्रथा प्रचलित थी| एक बार उन्होंने भी अपने निजी कार्यो
में मदद के लिए एक गुलाम खरीदा| उन्होंने गुलाम से पुछा, ‘बता तेरा नाम क्या है?’
गुलाम ने उत्तर दिया, ‘जिस नाम से आप पुकारें|’ बादशाह ने फिर पूछा, ‘तू क्या
खाएगा?’ गुलाम ने कहा, ‘जो आप खिलाएंगे|’
बादशाह ने थोड़ी हैरत से पूछा, ‘तुझे कैसे कपड़े
पसंद है? गुलाम ने जवाब दिया, ‘जो आप पहनने को दें|’ बादशाह फिर बोले, ‘तू क्या
काम करेगा?’ गुलाम ने विनम्रतापूर्वक कहा, ‘आप जो भी हुक्म करें|’
बादशाह दंग रह गए| उन्होंने इस तरह की बातें कभी
नहीं सुनी थी| उन्होंने पूछा, ‘आखिर तू चाहता क्या हैं?’ गुलाम ने सिर झुकाकर जवाब
दिया, ‘हुजूर गुलाम की अपनी क्या चाह?’
बादशाह गद्दी से उतरकर उसे गले लगाते हुए बोले,
‘आज से तुम मेरे उस्ताद हो| तुमने अनजाने में ही मुझे बहुत बड़ी सीख दी हैं| किसी
इंसान को यह हक़ नहीं कि दूसरे को गुलाम बनाए| तेरी बातों से पता चला कि खुदा के
साथ हमारा रिश्ता कैसा होना चाहिए| हमें ज्यादा पाने की चाह नहीं रखनी चाहिए|’
सीख – मानव सेवा ही
ईश्वर की सच्ची इबादत है|
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