वो खेल जो आज भी हमें बच्चा बना देते है
आईये आज हम उन खेलो
के बारे में बात करते है जो हम क्या हमारे बड़े भी अपने बचपन में खेला करते थे| जो
आज इस भागती हुई जिंदगी से कही गुम हो गए है| कितना बदल गया है
बचपन | अब जहाँ देखते है वहां गैजेट्स ही दिखते है तो आइये क्यों न हम अपने बचपन
में खेले गए खेलो से बच्चो को रूबरू कराते है और उनके साथ खेल कर हम भी एक बार फिर
से बच्चे बन जाते है .....................
सांप सीढी— इस खेल
को खेलने से बच्चे गिनती जोड़ खेल खेल में सीख जाते थे | साथ ही अपनी मंजिल तक बहुत
सी रूकावट में भी आगे बढ़ने की सीख मिलती थी |
पोसंपा – इस खेल में
दो खिलाडी हाथ पकड़ कर ऊँचा घेरा बनाते है और गाना गाते है – “ पोसंपा भाई पोसंपा, लाल किले में क्या हुआ, सौ
रूपये की घडी चुरायी, अब तो जेल में आना पड़ेगा ......” गीत के बच्चे रुक जाते है और जो बच्चा उस हाथ के
घेरे में आ जाता है वह आउट हो जाता है |
गट्टे – यह मार्बल
या नदी के पास मिलने वाले पांच गुट्टो से खेला जाता है इस खेल में एक गट्टे को
उछाल कर दुबारा पकड़ने से पहले बाकी नीचे रखे पत्थरों को उठाना है जो यह कर लेता है
वह जीत जाता है | इससे बच्चे में एकाग्रता बढती है वह फटाफट काम कर पाता है |
लट्टू – आज के बच्चे
जिस फिजेट स्पिनर को खेल कर खुश हो जाते है वो हमारे ज़माने का लट्टू ही तो है|
लकड़ी के गुट्टे पर लिपटी डोर को विशेष अंदाज में छोड़ने पर वह घूमता था| यह खेल
बच्चे तो बच्चे बड़े भी मजे से खेलते थे |
कंचे – रंग बिरंगे
चमकीले कंचे, जिन्हें हम खजाने की तरह सेज कर रखते थे| कंचे पर लक्ष्य लगाकर
विजेता खिलाडी सभी कंचे बटोर कर ले जाते| हारने वाला देखता रह जाता |
इसके अलावा गिल्ली
डंडा, चिंगा पौ, लंगड़ी टांग, विष अमृत, छुप्पन छुपायी, चौपड़ पासा जैसे खेल जो धीरे
धीरे अपना जादू खो रहे है |
तो आईये हम अपने
बच्चो के सुखद भविष्य के लिए कदम बढ़ाते है, और उनके साथ बच्चे बनकर खेलते है और
उन्हें एक स्वस्थ जीवन शैली प्रदान करते है
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